इंदौर के रेड जोन घोषित किए गए हॉस्पिटल से रिपोर्ट / बेड के नीचे यूरिन, मरीज को टंकी का पानी पिला रहे, सफाईकर्मी अंदर तक नहीं घुस रहे

गंदगी, मरीज के बेड के नीचे यूरिन, बदबू और देखरेख करने वाला कोई नहीं। ये हाल उस इंदौर शहर के एमआर टीबी अस्पताल का है, जहां कोरोनावायरस घातक रूप ले चुका है। हैरानी की बात ये है कि, ये स्थिति तब है जब इस अस्पताल को रेड जोन अस्पताल घोषित किया गया है। यहां सिर्फ कोरोनावायरस पॉजिटिव मरीजों को इलाज के लिए लाया जा रहा है। 24 मार्च तक कोरोना से मुक्त रहा इंदौर संक्रमित शहरों की सूची में आठवें नंबर पर आ चुका है, इसके बावजूद इस अस्पताल की व्यवस्थाएं वेंटिलेटर पर हैं। सोमवार रात जब भास्कर की टीम यहां पहुंची तो अस्पताल के हाल देखकर यकीन करना मुश्किल था कि हालात इतने बदतर भी हो सकते हैं।


प्राइवेट अस्पताल में ठीक हो रहीं थीं, सरकार की व्यवस्थाओं ने और बीमार कर दिया...


अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजन बोले- सोमवार रात को जब हम अस्पताल में अंदर घुसे तो हर कहीं अव्यवस्थाएं नजर आईं। मरीज के बेड के नीचे यूरिन पड़ा था। वार्ड बॉय हॉस्पिटल में तो थे, लेकिन मरीज के बेड के आसपास भी नहीं जा रहे थे। रविवार रात को ही सुयश अस्पताल से एमआर टीबी अस्पताल में भर्ती की गईं 70 वर्षीय महिला बेड पर पड़ी थीं। न उन्हें कोई देखने वाला था और न ही कोई सफाई करने उनके कमरे में आया था। निजी अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी रिकवरी हो रही थी, लेकिन सरकारी अस्पताल में आने के बाद हालत खराब होने लगी। यहां कोई देखरेख करने वाला नहीं है। बेड गंदा हो रहा था। स्टाफ द्वारा सफाई करने काम तो दूर कोई अंदर तक नहीं जा रहा है। खाना भी दूर से देकर चले जाते हैं। मरीज पानी पीने के लिए परेशान होती रहीं, लेकिन कोई पानी देने भी नहीं जा रहा था। मरीज को गर्म पानी देना चाहिए लेकिन यहां तो ऊपर की टंकी का पानी दे रहे थे। गंदगी के बीच वह पड़ी रहीं।


हम ठीक हो रहे थे तो इस अस्पताल में ले आए, यहां तो हम और बीमार हो जाएंगे...
कोरोना पॉजिटिव पाई गई 18 साल की लड़की जब भास्कर रिपोर्टर से मिली तो उसकी आंखों में आंसू भर आए। हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं के बारे में पूछने पर बोली- ‘हम ठीक हो रहे थे, लेकिन सरकारी अस्पताल में ले आए, यहां तो हम और बीमार हो जाएंगे। मेरी छोटी बहन की उम्र 14 साल है। मेरे पिता को भी कोरोनावायरस का संक्रमण हो चुका है। इसलिए हम दोनों बहनों की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ गई। मम्मी की रिपोर्ट नेगेटिव आई है। 24 मार्च को रिपोर्ट में हमें पता चला कि कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है। हमारे यहां कुछ लोग आए और हमें सीएचएल अस्पताल में भर्ती करवाया। मुझे सिर्फ गले में दर्द और खराश की समस्या थी। मेरी बहन को भी मामूली जुकाम था। डॉक्टर साहब ने हमें कहा भी था कि तुम्हारी बीमारी तो मामूली है। जल्दी ठीक हो जाओगी। घर से किताबें भी मंगवा ली थीं। रोज अस्पताल के कमरे में पढाई भी कर रही थी। डॉक्टर साहब ने कहा था कि दोबारा जांच करेंगे। नेगेटिव होगा तो घर भेज देंगे। वापस जांच होनी थी, लेकिन हमें सीएचएल अस्पताल से रात को टीबी अस्पताल ले आए। यहां पर डॉक्टरों का रवैया ठीक नहीं है। रात को बेडशीट भी नहीं दी जा रही थी। बहुत मांगने के बाद जब बेडशीट दी तो वह बहुत गंदी थी। पानी पीने के लिए हमें छह-सात बार आवाज लगानी पड़ती है, तब जाकर कोई पानी लेकर आता है। खाना जिस ट्रे में दिया गया था वह भी बहुत गंदी थी। उसमें धूल जमी थी। सीएचएल अस्पताल में हमारी रिकवरी बहुत तेजी से हो रही थी, लेकिन यहां आकर तो हम और बीमार हो जाएंगे। यहां का वॉशरूम भी बहुत गंदा है। इस बीमारी से हमें बिल्कुल भी डर नहीं लगता। जब हम अस्पताल में पहली बार गए थे तभी डॉक्टर ने बोला था कि डरने की कोई बात नहीं है। तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे, लेकिन यहां तो कोई सैंपल भी लेने नहीं आया।’



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